रुदायन बदायूँ।
शिवम पाठक के मकान के सामने वाले हनुमान मंदिर के लिए समर्पित
श्री रामकथा महोत्सव में कथा व्यास सोनू महाराज ने बताया कि इस कलयुग में श्री रामकथा कल्प वृक्ष है सभी के मनोरथो को पूर्ण करती है , राजा जनक विश्वामित्र जी से कहते हैं ये दोनों बालक कौन है क्या किसी राजा के बेटे राजकुमार है या मुनि कुल से हैं
मुझे तो लगता है कि पृथ्वी पर साक्षात ब्रह्म मनुष्य रुप में आ गया है इन्हें देख कर मेरे मन में अनुराग घूम रहा है ऐसा आज तक नहीं हुआ मैंने सुना है भगवान अनुराग से ही मिलते हैं जल्द जीने जानकी जी वाला कक्ष खाली करा कर उसमें राम लक्ष्मण और विश्वामित्र को शॉप दिया भगवान तो भक्ति के भवन में ही निवास करते हैं
भोजन विश्राम के बाद भगवान ने गुरुदेव से कहा लखन जनकपुरी देखना चाहते हैं गुरुजी ने आशीर्वाद दिया और कहा तुरन्त जाओ और दिखा लाओ सारे नगर में दो सुंदर राजकुमार आए हे ऐसा समाचार चारो तरफ़ फैल गया सब ने अपने काम धाम शुरु कर छोड़कर भगवान के दर्शन के ऐसा लगता है जनकपुर वासी कुछ लूटने के लिए आए गरीब को निधि मिल गई होड़ लगी है दर्शन करने की एक सखी कहती है यह दोनों दशरथ के बेटे हैं लखन ने कहा प्रभु यह तो हमारे पिताजी को जानती हो भगवान ने का हमारे पिताजी चक्रवर्ती हैं उन्हें सब जानते हैं आगे बढ़े इतने कहां इनकी माता का नाम कौशल्या है और जो पीछे सुंदर से राजकुमार हैं उनकी मां का नाम सुमित्रा है लखन जी बोले प्रभु ये सखी तो अपनी तरफ कि लगती है थोड़ा इससे बात करते हैं भगवान ने कहा लखन यहां पर माया का बहुत प्रभाव इसलिए विना इधर उधर देखे चलते रहो l सब दर्शन करना चाहते हैं रामजी की लेकिन भगवान अपना मुह नीचे किए हुई चलते हैं तब जनकपुरी की गोपिकाओ भगवान के ऊपर सुमन अर्पित किए अर्थात सुंदर मन भगवान को शक्ति भगवान ने कहा इस अवतार में एक पत्नी व्रत लेकर आया हूं द्वापर में आप सबकी मन इच्छा पुरी होगी l भगवान वापस गुरुदेव के पास आए रात्रि सयन किया प्रातः काल उठे और गुरुदेव की पूजा के लिए पुष्प लेने अशोक वाटिका में गए माली चाचा को प्रणाम किया से आगे लेकर पुष्प तोड़ने लगे इस समय पुष्प वाटिका में जानकी जी का प्रवेश होता है जो पार्वती जी का पूजन करने आई थी साथ में कुछ सहेलियां है जैसी उन्हें पता चलता है की दो राजकुमार बैग देखने आए हैं जिनकी चर्चा सारे नगर में है एक सखी जिसने देखा था उसने कहा वह अपने रूप माधुरी से सारे जनकपुर वासियों का मन मोह लेते हैं जानकी जी भी देखने को उत्सुक हैं सहेलियों के साथ उसे और चल दी भगवान के कान में भगवान के कान में पायल के घुंघरू की आवाज पहुंचती है ऐसा लगता है कामधेन हो गई लखन से अपनी बात करते हैं लखन और श्रृंगार करते हैं भगवान भगवान ने जानकी को दिखा जानकी ने भगवान को दिखा और हृदय में बसा लिया अपना पति स्वरूप मान लिया लेकिन फूल तोड़ते हुए भगवान को दिखा उनके चेहरे पर पसीने की बूंदे थी घबराई घबराई सोचने लगी की जिन्हें फूल तोड़ने में पसीना आता है वह धनुष कैसे तोड़ पाएंगे यह तो नाजुक है तब मां भवानी के मंदिर में अपने मन की बात कहने गई प्रणाम किया सारे मां की बात बता दो मां भवानी का आशीर्वाद प्राप्त हो गया तुम्हारे मन में जो भी हो वह सारी इच्छा पूर्ण होगी, माला उनके गले में गिर गई प्रसन्न मन से वापस राजमहल आई l
मोर ने दर्शन करते करते सारे पंख छोड़ दिए भगवान को समर्पित हो गया भगवान ने देखा मोर के पंख सीस पर लगा लिया तब से उस पक्षी का नाम मोर पढ़ गया मेरा है मेरा है सब प्रेम करने लगे,
धनुष यज्ञ के लिए राजा जनक ने शतानंद जी को बोला राजकुमार और शाहिद गुरुदेव को लेकर आओ सदानंद जी के कहने पर जैसे ही भगवान सहित गुरुदेव का प्रवेश हुआ सब ने अपने-अपनी मनोविक्षा के अनुरूप भगवान के दर्शन करें जिनकी जैसी भावना थी जैसी साधना थी जैसी दर्शन कक्षा थी उसी के अनुरूप भगवान को दिखा भगवान वीरों को महावीर जो पुत्र रूप में मानते हैं उन्हें पुत्र भगवान रुपए मानते हैं उन्हें भगवान जो जिस रूप में मानता है नानक जनक सुनैना को भगवान दामाद के रूप में देखते हैं
श्री राम कथा के यजमान हरिओम शर्मा रहे जिन्होंने पत्नी सहित बेदीयों का पूजन कर व्यास पीठ और व्यास का पूजन किया
कथा में पंडित रावेंद्र शर्मा (दरोगा जी) कुलदीप शर्मा जी,प्रदीप उपाध्याय (फौजी),मुनेश उपाध्याय, राजेन्द्र उपाध्याय, राजेश पालीवाल,बंटू पालीवाल, धर्मेन्द्र पाठक,रजनेश उपाध्याय (आचार्य जी) सीटू,नरेश पाठक,रामप्रकाश मुखिया,आदि सैकड़ो भक्तों ने आरती करके प्रसाद ग्रहण किया
लेखक सह सम्पादक पं0 महन्त अर्जुन उपाध्याय की कलम से
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