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ब्राह्मण से द्वेष,अश्रद्धा,रखने वाले मनुष्यों का धन ऐश्वर्य का नाश होता है।

ॐ न विप्रपादोदककर्दमानि,
न वेदशास्त्रप्रतिघोषितानि!

       स्वाहास्नधास्वस्तिविवर्जितानि,
श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।


       भावार्थ यह है कि जहां ब्राह्मणों का चरणोदक नहीं गिरता,जहां वेद शास्त्र की गर्जना नहीं होती,जहां स्वाहा, स्वधा, स्वस्ति और मंगल शब्दों का उच्चारण नहीं होता है। वह चाहे स्वर्ग के समान भवन भी हो तब भी वह श्मशान के समान है।

       पूर्वकाल में विष्णु भगवान के मुख से ब्राह्मण , बाहुओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और चरणों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई। पितृयज्ञ(श्राद्ध-तर्पण), विवाह, अग्निहोत्र, शान्तिकर्म और समस्त मांगलिक कार्यों में सदा उत्तम माने गए हैं। ब्राह्मण के मुख से देवता हव्य और पितर कव्य का उपभोग करते हैं। ब्राह्मण के बिना दान,होम तर्पण आदि सब निष्फल होते हैं।

      अर्थात - हमारे गुरुदेव श्री श्री 1008 स्वामी ब्रह्मगिरि जी महाराज कहते हैं कि जहां ब्राह्मणों को भोजन नहीं दिया जाता,वहा असुर,प्रेत,दैत्य और राक्षस भोजन करते हैं। इसलिए कहा जाता है ब्राह्मण को देखकर श्रद्धापूर्वक उसको प्रणाम करना चाहिए।

उनके आशीर्वाद से मनुष्य की आयु बढती है,वह चिरंजीवी होता है। ब्राह्मण को देखकर भी प्रणाम न करने से,उनसे द्वेष रखने से तथा उनके प्रति अश्रद्धा रखने से मनुष्यों की आयु क्षीण होती है, धन ऐश्वर्य का नाश होता है तथा परलोक में भी उसकी दुर्गति होती है
 
"ते मन्त्रा:ब्राह्मणा:तस्माद ब्राह्मण देवता,,
अर्थात -सारा संसार देवताओं के अधीन है तथा देवता मंत्रों के अधीन हैं और मंत्र ब्राह्मण के अधीन है ब्राह्मण को देवता माने जाने का एक प्रमुख कारण यह भी है।
अर्थात ब्राह्मण से द्वेष, अश्रद्धा,रखने वाले मनुष्यों की आयु क्षीण होती है, धन ऐश्वर्य का नाश होता है तथा परलोक में भी उसकी दुर्गति होती है,इसमें कोई संदेह नही करना चाहिए
      लेखक महन्त अर्जुन उपाध्याय की कलम से
                                                                               

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