अखिलेश कुमार मिश्रा(सम्पादक अथबा लेखक)
अरुण कुमार शर्मा(लेखक अथबा पत्रकार)
बिसौली
आज पत्रकारिता एक नाम बनकर रह गई है। वह नाम जो ना किसी के काम आने वाला है ।एक टाइम था जब कहा जाता था की पत्रकारिता एक ऐसा शब्द है। की जिसके नाम से बड़े-बड़े आला अधिकारी के पसीने छूट जाते हैं । और हर छोटे बड़े नागरिक के साथ ऐसे खड़ा होता है। जिसकी तुलना एक आम नागरिक के लिए स्वयं भगवान के बराबर है ।जिसकी वह तुलना भी नहीं कर सकता है। मगर आज ऐसा नहीं है ।आज के इस दौर में सबका सब उल्टा हो गया है। जैसे बड़े स्तर के पत्रकार जो है जिनकी सोच छोटी और गंदी है ।वह आज हर एक पत्रकार को फर्जी पत्रकार बताते हैं। छोटे पत्रकार के लिए इसलिए फर्जी पत्रकार कहते हैं। कि छोटा स्तर का जो पत्रकार होता है वह हर छोटे से छोटे नागरिक के साथ सत्य की लड़ाई लड़ने के लिए हर वक्त उसके साथ खड़ा हो जाता है। आज के इस दौर में जो छोटे स्तर के पत्रकार हैं। वह हर संभव मेहनत वह लगन से बिना डरे बिना झुके और एक सत्य की राह की ओर पत्रकारिता को ले जा रहे हैं। छोटे स्तर के पत्रकार से बड़े स्तर के पत्रकार क्यों नाराज और फर्जी करार देते हैं।जबकि आरोप लगाने बाले पहले अपने गलेवां मे झांक कर नही देखते ,की सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार उन्ही के द्वारा फैलाया गया है ।जहाँ तक की खबरों पर भी एक अंकुश लगने लगा है । यह मैं आपको बता रहा हूं, छोटा स्तर का पत्रकार हर छोटी से छोटी खबर पर तत्काल प्रभाव से पहुंचता है ।और उस खबर को सत्यता के रूप में तत्काल में प्रकाशित सोशल मीडिया के माध्यम से करता है ।जब तक मामला बड़े स्तर के पत्रकार तक पहुंचता है। तब तक छोटे पत्रकार उस खबर को प्रकाशित कर चुका होता है यही एक शिकस्त बड़े पत्रकार को छोटे पत्रकार से मिल रही है ।मैंने अपनी इस 33 वर्ष की आयु में बहुत कुछ देखा है मुझे लगता है, की जो सत्य की राह पर पत्रकारिता करता है ।उसे कभी भी कोई भी पत्रकार ना छोटा लगता है। और ना फर्जी लगता है ।छोटा और फर्जी उसे लगता है। जिसे पत्रकारिता से अपनी जिंदगी जीने का रास्ता मिल रहा है। जो पत्रकारिता की आड़ में हर संभव हर वह काम करता है ,जो सत्य के परे है,हमारे पत्रकार भाई बड़े स्तर के जो होते हैं। वह मीटिंग करते हैं उस मीटिंग में अगर कोई छोटे स्तर का पत्रकार या एक आम नागरिक भूल से पहुंच जाता है। तो उसका ऐसा मान सम्मान करते हैं। जैसे एक दुश्मन के साथ करते हो क्या बड़े पत्रकार का एक आम छोटे इंसान के साथ खड़ा होना उसको छोटा बनाता है या उनके लिए शर्मिंदगी महसूस करता है ।मगर मेरा कहना है, जो पत्रकार या आम नागरिक किसी पीड़ित के साथ खड़ा है। वह मेरी नजर में एक सच्चा पत्रकार है। और एक अच्छा नागरिक भी है मेरा काम है हर उस छोटे नागरिक के साथ खड़ा होना चाहिए जिसके साथ अत्याचार हो रहा हो ऐसी मेरी मानसिकता है। मैं अपने जीवन को अपने कर्मों के आधार पर जी रहा हूं ।अच्छा करूंगा तो अच्छा होगा बुरा करूंगा तो बुरा होगा जिस बुरे काम को कोई नहीं देखता है उसे हमारा परमात्मा देखता है ।इसलिए मेरा मानना है कि अगर पत्रकार चाहे तो इस भारतवर्ष में कभी किसी छोटे नागरिक को किसी तरीके का उत्पीड़न नहीं उठाना होगा और ना कभी किसी आला अधिकारी का उसे उत्पीड़न सहना पड़ेगा ।
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