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मेरे प्रगतिशील पुरोधा /काव्य लेखक अभिषेक कुमार मिश्रा


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वाह मेरे प्रगतिशील पुरोधा , तूने कैसी राह दिखलाई 
खुद तो तुझे शर्म नहीं आयी , लेकिन तुम्हारी बात सुन 
देखों कैसे प्रगतिशीलता शरमाई 

'प्रशांत भूषण को कोर्ट का फैसला नहीं मानना चाहिए 
कोर्ट का अवमानना कर उसे भगतसिंह बन जाना चाहिए'
वाह प्रगतिशील पुरोधा , तूने कैसी राह दिखलाई 

भगतसिंह जैसे क्रांतिवीर से प्रशांत भूषण जैसों की तुलना करते
क्या तुझे एक बार भी शर्म नहीं आयी ,
या की अपनी राजनीति चमकाने के लिए 
भगत , आजाद ... आदि का नाम बेचना 
तुम्हारे कथित विचारधारा में है समाई ,

मेरे प्रगतिशील पुरोधा , दंड किसको मिलता है 
जो दोषी हो उसको मिलता है ,
दंड - दंड होता है , ना छोटा - ना बड़ा होता है ,
अदालत में जिसको दंड मिलता है 
अदालत के रिकॉर्ड में उसके नाम के साथ दोषी लगता है ,
प्रशांत भूषण दोषी है इसलिए उसको सजा मिली है ,

वाह मेरे प्रगतिशील पुरोधा , अब लगता है आपकी 
यादाश्त भी मात खाने लगी है ,
तभी तो आपकी हर बांतें , अब लोगों को भरमाने लगी है ,
भगतसिंह ने कोर्ट के निर्णय का अवमानना नहीं किया था
देश हित में , देश को जगाने की खातिर 
हँसते - हँसते , इंकलाब का नारा लगाते ,
फाँसी के फंदे को चूम लिया था ,

मेरे प्रगतिशील पुरोधा , अब जड़ा गौर फरमाइए 
प्रशांत भूषण अगर जुर्माने के रूप में एक रुपया नहीं दे सकते
तो फिर तीन महीने जेल या की तीन साल कोर्ट प्रैक्टिस 
से दूर रहने के लिए उन्हें मनाइए ,
थोड़ा मुझको भी समझाइए 
प्रशांत भूषण के लिए इन तीनों में आसान रास्ता क्या है बतलाइए
और थोड़ा सजा मिलने के बाद प्रशांत भूषण के द्वारा 
दिया गया बयान भी लोगों को बतलाइए 
" सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सर्वोच्च है "
में निहित गूढ़ अर्थ और स्वार्थ के बीच के संबंध को भी 
थोड़ा सा ही सही यथार्थ के पटल पर तो लाइये ,
मेरे प्रगतिशील पुरोधा , लोगों को यूं ना भरमाइये ,
प्रशांत भूषण की तुलना भगत सिंह से कर 
भगत सिंह को मजाक मत बनाइये ,
भगत सिंह के अंदर छल - छद्म और क्षणिक स्वार्थ नहीं 
और प्रशांत भूषण के अंदर देश के लिए परमार्थ नहीं ,
इस सच को समझिए और लोगों को समझाइए ,

हे मेरे प्रगतिशील पुरोधा , 
झूठ और भरम का सूट पहन , यूँ ना राजनीतिक वैतरणी में गोता लगाइए ,
देश विरोध , धर्म विरोध , न्यायपालिका विरोध ......
विरोध , विरोध .... लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं का विरोध .... विरोध को प्रगतिशीलता का समानार्थी मत बनाइये ,
कभी तो दर्पण के सामने खड़े होकर 
अपना चेहरा भी निहारिये ।

©®
डॉ अभिषेक कुमार

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