लेखक .अब्दुल कादिर
आयुर्वेद एक उपचार।
संस्कृत भाषा में आयुर्वेद का अर्थ है ‘जीवन का विज्ञान’ (संस्कृत मे मूल शब्द आयुर का अर्थ होता है ‘दीर्घ आयु’ या आयु और वेद का अर्थ हैं ‘विज्ञान।
एलोपैथी औषधि (विषम चिकित्सा) रोग के प्रबंधन पर केंद्रित होती है, जबकि आयुर्वेद रोग की रोकथाम और रोग को उत्पन्न करने वाले मूल कारण को निष्काषित करने पर केंद्रित होता है।
आयुर्वेद के अनुसार जीवन के उद्देश्यों यथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिये स्वास्थ्य पूर्वपेक्षित है। यह मानव के सामाजिक, राजनीतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक पहलुओं का समाकलन करता है, क्योंकि ये सभी एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
आयुर्वेद तन, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित कर व्यक्ति के स्वास्थ्य में सुधार करता है। आयुर्वेद में न केवल उपचार होता है बल्कि यह जीवन जीने का ऐसा तरीका सिखाता है, जिससे जीवन लंबा और खुशहाल हो जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति के शरीर में वात, पित्त और कफ जैसे तीनों मूल तत्त्वों के संतुलन से कोई भी बीमारी नहीं हो सकती, परन्तु यदि इनका संतुलन बिगड़ता है, तो बीमारी शरीर पर हावी होने लगती है।
अतः आयुर्वेद में इन्हीं तीनों तत्त्वों के मध्य संतुलन स्थापित किया जाता है। इसके अतिरिक्त आयुर्वेद में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने पर भी बल दिया जाता है, ताकि व्यक्ति सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो।
रोग प्रतिरोधक आयुर्वेद।
इसके अतिरिक्त वर्तमान में आयुर्वेद ने अपनी ओर सभी का ध्यान आकर्षित किया है क्योंकि भारत सरकार ने वैश्विक महामारी COVID-19 से लड़ने के प्रयासों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिये आयुर्वेदिक संघटकों के उपयोग का आह्वान किया है। सरकार ने COVID-19 के रोकथाम हेतु प्रतिरोधी तथा उपचार में चयनित और मानकीकृत आयुर्वेदिक दवाओं के सुरक्षित और प्रभावी उपयोग का मूल्यांकन करने के लिये अभिनव नैदानिक दवा परीक्षणों की घोषणा की है।
आधुनिक बीमारियों के इलाज में आयुर्वेद के बढ़ते महत्त्व को देखते हुए अब यह अधिक सक्रिय रूप से स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल प्रणाली में प्रतिभाग करने के लिये तत्पर है। इस प्रकार, एक आधुनिक जीवंत स्वास्थ्य और चिकित्सा प्रणाली में इसकी प्रगति और परिवर्तन की निगरानी करने की आवश्यकता है।
रिपोर्ट.. अरुण कुमार
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