आंदोलन के नाम पर अराजकता ने किसान आंदोलन के नाम पर निकाली गई रैली में राष्ट्रीय राजधानी में जो कुछ हुआ वह गुंडागर्दी है । सरकार ने किसानों के साथ जो संवेदनशील व नरम रवैया अपनाया और बार - बार वार्ता की मेज पर आमंत्रित किया उसे किसानों को बरगलाने वाले तत्व को सरकार की कमजोरी व अपनी जीत मान रहे हैं । इस दो आंदोलन में किसानों का एक वर्ग शामिल जरूर है पर वह झूठ और भ्रम के जाल में फंसाकर लाया गया है । पंजाब सरकार की उन्हें खुली शह प्राप्त थी । सरकार ने ने किसानों को वार्ता के अवसर दिए पर बात बिगाड़ने वालों ने किसानों को उसका लाभ नहीं मिलने दिया । आंदोलन स्थल पर मिलने वाली सुविधाओं और मेले जैसे आनंद के चलते किसान उनके मोहरे बने हुए हैं और अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं । आखिर वार्ता के अलावा समाधान का कौन - सा तरीका होता है ? एकतरफा कानून वापसी की मांग कहां तक न्यायसंगत है ? कोई इस बात पर विचार नहीं कर पा रहा कि आखिर किसानों के वोट से चुनी हुई एक लोकप्रिय सरकार किसानों के अहित के लिए कोई कानून कैसे बना सकती है । सब देख रहे हैं कि मोदी सरकार एक के बाद एक देश हित में नियमन कर रही है , फिर भी लोग ठगों के झांसे में आ जाते हैं । आखिर यह कैसे भविष्यवाणी की जा सकती है कि इस कानून से किसान को नुकसान ही होगा । अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है । किसान तो धीरे धीरे स्वयं ही समझ जाएंगे लेकिन , अब उन्हें चिह्नित कर समझाने का समय आ गया है , जो आंदोलन के नाम पर अराजकता फैला रहे हैं।
लेखक-आसू मिश्रा* समाज सेवी* बिसौली* प्रदेश मन्त्री *मोदी सेना,(बदायूँ)
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