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साम्यवाद का चूरन मिल गया , जातिवादी घोल में
कलतक पानी पीकर जिसे कोसता रहा ,
उसी के लिए मिठास घुली रही , पोपले - पोपले बोल में
जिसने खाया था जनाधार , आज वही पतवार बना है
क्रांति- पुत्र के चरण छूने का चमचई फंडा
लाल दरिया में लाल नाव का , लाल युवा ही खेवनहार बना है
बुद्धिजीवियों की बुद्धि , शुद्धिकरण की ओर बढ़ा है
क्षुब्ध होकर लेलिन एक बार फिर से
गंजे सिर पर बार - बार हाथ फेर रहा है ,
नवल क्रांति की नूतन तरंग यह , हे राजन तरंगित हो जाओ
भ्रम तजों हे मूढमति तुम , थोड़ी अब तो सुधि - गति- मति पा लो
शरण में आया हूँ , हे लीलाधर कन्हैया अब तुम ही भवसागर पार लगाओ ।
©®
डॉ अभिषेक कुमार
2 Comments
बहुत सुन्दर और बहुत बढ़िया
ReplyDeleteBahut Sundar 👌👌👌👌
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